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मुख्य कहानी 7 दिसंबर, 2021

क्षेत्रीय वायु प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियां और भारतीय राज्य

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मुख्य बिंदु

  • भारत में वायु गुणवत्ता प्रबंधन एक क्षेत्रीय मुद्दा है।
  • सौभाग्य से, भारत के राज्यों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब पहले की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद है।
  • विश्व बैंक उत्तर प्रदेश और बिहार को शहरों पर केंद्रित योजनाओं की बजाय उन्हें अपने पहले राज्यव्यापी स्वच्छ वायु कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में मदद कर रहा है, जो एयरशेड निर्माण के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण कदम है।

पिछले कुछ दशकों में, भारत में आर्थिक विकास गतिविधियों के कारण वायु की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आई है। दिल्ली में प्रदूषण के उच्च-स्तर और उसके लगातार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में शामिल होने के चलते वह मीडिया में चर्चा के केंद्र बना हुआ है और वायु प्रदूषण की समस्या अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गई है।

आम धारणा के विपरीत भारत में वायु प्रदूषण की समस्या केवल एक शहरी समस्या नहीं है, जो एकाध शहरों तक सीमित हो। देश की वायु गुणवत्ता में क्षेत्रीय स्तर पर ख़तरनाक रूप से गिरावट आई है, ख़ासकर सिंधु-गंगा मैदान के सात राज्यों में, जो उत्तर भारतीय एयरशेड का बहुत बड़ा हिस्सा है।

हालांकि यह सब जानते हैं कि पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) प्रभावित होते हैं, पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए भारत की मौजूदा नीति निर्माण प्रक्रिया काफ़ी सीमित है।

शहरों की कार्य योजनाएं उनके अपने अधिकार क्षेत्र तक ही सीमित हैं और वायु प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों की पहचान नहीं करती हैं जो उनकी प्रशासनिक सीमा के बाहर से आती हैं। वास्तव में, कानपुर, पटना और सिंधु-गंगा मैदान के अन्य शहरों में छाए स्मोग  प्रदूषण का लगभग एक तिहाई हिस्सा शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में खाना पकाने और अन्य गतिविधियों के लिए बायोमास ईंधन के दहन से पैदा होता है।

चूंकि वायु प्रदूषण स्पष्ट रूप से एक व्यापक समस्या है, जो कुछ-एक शहरों, राज्यों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि कुछ मामलों में उसका प्रभाव देशों की सीमाओं के पार भी दिखाई देता है। इसलिए हम एक बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैले एयरशेड में सिर्फ शहरी कार्य योजनाओं के ज़रिए कार्बन उत्सर्जन की दर में कमी नहीं ला सकते।

हर राज्य को अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए स्वयं आगे आना होगा, जिसका लाभ उनके पड़ोसी राज्यों को भी मिलेगा।


नेतृत्व की भूमिका में बिहार और उत्तर प्रदेश

अच्छी बात ये है कि अब राज्यों में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़रूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे घनी आबादी वाले राज्य भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक हैं।   इनकी  सरकारों के साथ मिलकर विश्व बैंक राज्यव्यापी स्वच्छ वायु कार्यक्रमों का निर्माण कर रहा है ताकि 2024 और 2030 तक वायु गुणवत्ता से जुड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकें।

 

बिहार के मामले में देखें तो राज्य के भीतर और बाहर से आने वाले प्रदूषकों के कारण राज्य में प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय स्तर से अधिक बना रहता है। इस कारण से अब बिहार राज्य भर में वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों की स्थापना कर रहा है।

स्थानीय विशेषज्ञता और अंतर्राष्ट्रीय तकनीकों को एक साथ लाकर, बिहार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने निगरानी केंद्रों को ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में स्थापित करके प्रदूषकों की निगरानी व्यवस्था को विविध बनाया है ताकि ये पता लगाया जा सके कि अलग अलग स्रोतों जैसे कृषि, उद्योग, घर, परिवहन आदि से निकलने वाले प्रदूषकों की मात्रा क्या है। इससे पहले, केवल पटना, गया और मुज़फ्फरपुर में निगरानी केंद्र स्थापित किए गए थे और राज्य के 38 जिलों में से केवल 4 जिलों से मिलने वाले आंकड़ों को एकत्रित किया जाता था।

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एस. चंद्रशेखर कहते हैं, "अब हम शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्थापित किए गए कुल 24 केंद्रों से आंकड़ें जुटा रहे हैं, जिसे केंद्रीय आंकड़ों के साथ संग्रहित किया जा रहा है। आगे चलकर, हमारी योजना ये है कि हम जिला स्तर से बढ़कर और व्यापक स्तर पर काम कर सकें और विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ लाएं। हम चाहते हैं कि हम उनके काम में सहयोग कर सकें ताकि राज्य और उसके बाहर भी लोगों को इसका लाभ मिले।"

इसके अलावा, चूंकि बिहार में घरों से बायोमास ईंधन के दहन से निकलने वाले प्रदूषक राज्य में वायु प्रदूषण के सबसे बड़े कारक हैं, इसलिए विश्व बैंक अपने जीविका कार्यक्रम (ग्रामीण आजीविका परियोजना) के तहत द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) के साथ मिलकर एक ऐसी पायलट परियोजना को चलाने में मदद कर रहा है, जिसका लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं के बीच धुंआ रहित सौर ऊर्जा आधारित चूल्हों के उपयोग को बढ़ावा देना है। इन औरतों का कहना है कि बायोमास (लकड़ी, गोबर के उपलों) आधारित चूल्हों की बजाय स्वच्छ ऊर्जा वाले चूल्हों को अपनाने से उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और ईंधन से जुड़े खर्चों में भी बचत हुई है।

उत्तर प्रदेश ने भी राज्य में वायु प्रदूषण की समस्या पर सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया है।  उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) कानपुर और विश्व बैंक के साथ मिलकर एक स्वच्छ एयरशेड के निर्माण योजना पर काम रहा है। आंकड़ों का संग्रहण किया जा रहा है और अलग-अलग क्षेत्रों में लागत-प्रभावी हस्तक्षेपों की पहचान के लिए विभिन्न मॉडलों का अध्ययन किया जा रहा है ताकि ये पता लगाया जा सके कि किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा स्वच्छ वायु को लेकर राज्य की प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक नीतियों, संस्थानों और अनुपालन तंत्रों को विकसित करने के प्रयास भी जारी हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव आशीष तिवारी का कहना है, "उत्तर प्रदेश सिंधु-गंगा मैदान के केंद्र में स्थित है, जिसे दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण का 'हॉटस्पॉट' माना जाता है। इसलिए हमारे राज्य को न केवल अपने एयरशेड में आंतरिक स्रोतों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषकों की निगरानी करने की ज़रूरत है बल्कि पड़ोसी राज्यों जैसे दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से उत्सर्जित प्रदूषकों की दोहरी चुनौतियों से निपटना होगा। हमारी योजना लंबी दूरी तय करने वाले प्रदूषकों से निपटने के लिए भी एक रोडमैप तैयार करेगी ताकि इस एयरशेड में रहने वाले नागरिक स्वच्छ हवा में सांस ले सकें। यह योजना वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग के आधार पर एक ठोस रणनीति का निर्माण करेगी।"


वायु गुणवत्ता प्रबंधन कार्यक्रम (अंग्रेजी में)


आगे का रास्ता

 

सिंधु-गंगा मैदान में स्थित इन दो बड़े राज्यों में स्वच्छ हवा की दिशा में शुरुआती प्रयासों पर बड़े ज़ोर शोर से काम चल रहा है लेकिन उससे जुड़े कई प्रयासों पर काम करने की आवश्यकता है।

राज्यों को जिला और राज्य प्रशासनों के साथ-साथ जिला प्रशासकों के बीच समन्वय के नए तंत्रों का निर्माण करना होगा, जहां बहु-क्षेत्रीय संवाद की संभावना सुनिश्चित की जा सके. इसकी सहायता से विभिन्न विभागों को अपनी कार्य योजनाओं को समन्वित करना और उन्हें प्राथमिकता के स्तर पर श्रेणीगत करना आसान होगा।   इसके तहत नए राज्य प्राधिकरणों की स्थापना की जा सकती है, जिनका अधिकार क्षेत्र काफ़ी व्यापक हो और इसके साथ ही एक नियामक संस्था की स्थापना की आवश्यकता है, जहां विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श की व्यवस्था हो.

अलग-अलग राज्यों द्वारा की जा रही पहलों के अलावा, केंद्र सरकार की सहायता से क्षेत्रीय समन्वय तंत्रों के निर्माण की भी ज़रूरत है। राज्यवार स्वच्छ वायु योजनाएं तब अंतरराज्यीय और क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बन सकती हैं।

कैरिन शेपर्डसन, जो विश्व बैंक की प्रमुख पर्यावरण विशेषज्ञ हैं, का कहना है, "हम इस महत्त्वपूर्ण मौके पर भारत के साथ काम कर रहे हैं क्योंकि वह एक व्यापक एयरशेड आधारित प्रबंधन दृष्टिकोण के साथ काम कर रहा है। कार्बन उत्सर्जन की गिरावट को एक ख़ास स्तर तक लाने पर हम लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार की संभावना की उम्मीद कर सकते हैं।"



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